Thursday 12 December 2013

" प्रार्थानांजली   "
प्रार्थना बन कर , जो कर रही प्रार्थना 
पा रही स्व्यं को , ख़ुद को जोड़ कर 
बन कर तेरी प्रार्थना .....
घुल रही बन कर तेरी प्रार्थना 
लक्षय सफल होता , इस जीवन का 
बन कर तेरी प्रार्थना .....
बन गयी कोमल , खो गयी तुझमें 
और क्या चाहूं , इस जीवन से 
बन कर तेरी प्रार्थना .....
एक एहसास का है फ़ासला
हुआ है एहसास , सांसो से सांसो का फ़ासला
बन कर तेरी प्रार्थना .....
किताना स्नेह् पाती हूँ अपने लिए
जो तू घुलने लगता मुझमें
बन कर तेरी प्रार्थना .....
परिन्दे बन उड़ते मेरे भाव के
जब मिलते स्नेह्-व्योम में
बन कर तेरी प्रार्थना .....
विलीनता पाती ,भार अश्रु सागर में
झर-झर बहती ,व्येग धारा बन कर
बन कर तेरी प्रार्थना .....
कितना सुखमय साथ है तेरा मेरा
एक तरफा हो चला अब ये मन मेरा
बन कर तेरी प्रार्थना .....
तू ऊँचा पर्वत शिखर सा विशाल
मैँ तलहटी की छांव में रोपी एक पौध
बन कर तेरी प्रार्थना .....
जब मुझमें माखन घुलता प्राइम का
मैँ तो मिसरी घोल लेती अपने में
बन कर तेरी प्रार्थना .....
इन नयनोँ में तुझे जड़ कर
इस आनंद से सजा लेती अपने को
बन कर तेरी प्रार्थना ...
कितना विशाल सा हो जाता
मेरी सोच का ये प्रेम का दायरा ....
बन कर तेरी प्रार्थना .....
......प्रार्थना .......

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