Sunday 23 June 2013

  • मनन .....
    मुद्दा यह नहीं है कि ईश्वर है कि नहीं ?? पूजा कैसे जाये ?? चमत्कार होते है ?? कौन सा मार्ग अपनायें ?? क्या जोड़ता है ??
    वरन हम क्या चाहतें हैं ...सोचते हैं ....करते हैं ....विश्वास करते हैं ...इसी सब पर निर्भर करता है हमारी परवरिश , स्थितियाँ हमको उसी के अनुकूल बना कर सोचने पर मजबूर कर देतीं हैं या ये कहिये कि जहाँ से ' पूर्ति " होने लगती है वहीँ से ...आसक्ति ...भक्ति ...प्रेम .... विश्वास ....का सफर शुरूआत का आधार बनने लगता है ....." पूर्ति  " सिर्फ भौतिक सुख की ही नहीं मानसिक तौर पर भी होती है नहीं तो मीरा - राधा , कबीर - तुलसी ,सुदामा - कृष्ण ....आदि -आदि ....का नामोनिशान न होता ....
    विश्वास का दूसरा रूप ही " ईश्वर " है जिसे हम एक शक्ति संचार के रूप में अपने अंदर पाते या जाग्रत कर सकते हैं , हमारी सोच ही तो ईश्वर है चाहे वे कोई भी हो ??...कैसे भी हों ?? कहीं भी वास करते हों ?? निराकार या साकार इससे क्या फर्क है .... हमारे मन की श्रद्धा और विश्वास ने ही उन्हें एक रूप दिया है ......इस पर इतनी बहस क्यों ??
    जब आपका स्तर ही उठकर आपके कर्म ,सोच और हृदय में बहने लगे तो आप क्या कहेंगे ?? सारे मुद्दे स्वयं ही समाप्त हो जायेंगे और आप में उसकी पूर्णता का आभास स्वतः ही झलकने लगेगा ....इसको आचार-विचार-व्यवहार से पाया जा सकता है ....
    भक्ति और कर्म एक ही के दो पहलू हैं ... " भक्ति कर्म से और कर्म से भक्ति " ....भक्ति के लिए कर्म जरुरी है यानि कि ध्यान में एकाकार ....और कर्म के लिए भक्ति होना जरुरी है ......भक्ति के लिए " विश्वास " का होना जरुरी है नहीं तो वह कभी पनपेगी ही नहीं ......कर्म स्वार्थवश नहीं होना चाहिए नहीं तो वह निज स्वार्थ से ऊपर उठ ही नहीं पायेगा ....
    "आस्था "....ही चमत्कार को जन्म देती है ....फूल गिरा तो नहीं स्वीकारा और नहीं गिरा तो स्वीकारा ..... कुछ अच्छा होगा या बुरा ...कैसे सम्भव हैं की आपके जीवन परयन्त्र कोई और सुख आपको नहीं मिलेगा ....कभी ना कभी तो आयेगा ही , तब आप शायद पूजा या चमत्कार का अनुभव करेंगे .....
    "धर्म "....एक पद्धति है लोगों के लिए ....लोगों से ....लोगों के द्वारा .....उस परब्रह्म शक्ति का संचार महसूस करने या पाने का… ना की लोगों में ...लोगों को ...बाँटने के लिए , तोड़ना और जोड़ना तो हम ही अपनी निज और धर्म की आड़ लेकर पूर्ती करतें हैं ..... हर धर्म के लोग में से संतात्मा हुए हैं इसलिए यह प्रश्न अपने आप ही पूर्ण नहीं की कौन सा धर्म सर्वश्रेष्ठ है ??
    और सभी एक सा सोचें ..करें ...यह सम्भव नहीं ...
    बस यूँ ही एक विचार ......
    ......प्रार्थना ........