Thursday 2 August 2012


ना जाने तेरी आँखों में, कैसा नूर है
जो मुझे रोशन कर जाता है......
ना जाने तेरे साथ की , कैसी ललक है
जो मेरे अंदर बढ़ती ही जाती है.....

तू तो है म्हारी कस्तूरी ,बसी थी जो म्हारे भीतर,
डोले-भटके बहार जग में ,कबऊ न झाँका अपने भीतर
जों झाँका अपने भीतर,विश्राम करत बैठे -मिले कान्हा बंसी बजावत...
.......प्रार्थना.....

तेरे अर्द्ध-चन्द्र जैसे नयनों में जो, शीतलता देख पा रहीं हूँ,
उनमें मेरा बरबस ही डूब जाने  को जी चाहता है
और क्या चाहूँ तुझ से, बस तेरा हो जाने को जी चाहता है......
....प्रार्थना...

तेरी मधुर -मुस्कान और चंचल नयन
बहुत लुभाते हैं मुझे .......कान्हा ......
कौन सी  कृपा  लिए बैठे हैं मेरे लिए
जो मुझे दोगे तुम, अपना बना के......
.....प्रार्थना.......

कौन रंग से रंगू म्हारे  मन को
सो कान्हा रीझ जाये मो पे ....
खुद तो  रंग-बिरंगे बन  बैठे
और मैं तो सदा से ही चाहूँ ...... "मोहे अपने ही रंग, में रंग दे"....



हे मधुसुदन !
कजरारे हैं कारे नयन में ....तेरी कृपा-दृष्टि
मधुर है अधर पर........ तेरी मीठी रसभरी मुस्कान
क्यों छल लेते हो हमसे .......हमारी .....सुध-बुध.....


तेरा ......प्रेम में ना जाने कैसा द्वन्द्ध है...  ??...."कान्हा".....
तू ना मिले तो भी ये बहते हैं.....अधीर हृदय के.....मौन में .....
और मिले तो भी ये बहते ही... हैं.......तेरे  प्रेम..... मगन-हृदय..... में.....
किसे लुभाने चले हो कान्हा.....
इतना श्रंगार कर किसे रिझाने चले हो, छेड़ रहीं गोपियाँ
क्यों ना .....तुम ....???
हम में से ही किसी को चुन लो...ना......
.....प्रार्थना .......
तू मेरे ह्रदय के बसाये , राधे-कुंज में आ के तो देख.... 
तेरे कोमल चरणों की आहट से 
कान्हा सुन इधर ही बरबस ही.....चलें आयेगें .....
 तू मेरे ह्रदय के बसाये , राधे-कुंज में आ के तो देख.... 
तेरे कोमल चरणों की आहट से 
कान्हा सुन इधर ही बरबस ही.....चलें आयेगें ......
...........प्रार्थना.....