श्रद्धांजली तुम्हें......
हे माँ!!!
सोचती थी कभी
न जाने तुम व्योम को क्यों देखती किस की तलाश थी,
ढूँढा करतीं रीते नयन लिए,अपने भीतर ....
हर पल को तुम
मौन हो कर विचारतीं क्या था वो तुम्हारे भीतर
जिस भाव को मैं अब,
ढूँढा करतीं महसूस करती अपने भीतर......
भटकन शान्त हुई होगी
तुम्हारी अब विलीन होकर
मैं हूँ उस पथ की व्याकुल पथिक-प्राणी जो तुम्हें है,
ढूँढा करती मृग-तृष्णा लिए अपने भीतर.....