मैं
तुझसे और क्या माँगू ?
जब मेरे नैनों का आँचल ही भीग जाता है...
तुझसे और क्या चाहूँ?
जब मेरी चाहत का प्याला ही छलक जाता है.....
तुझसे और क्या सुनूँ ?
जब मेरे ध्यान में तेरी, मौन की गूंजें भर जाती हैं....
तुझसे और क्या पाऊँ ?
जब मुझे स्वयं में ही खो जाने को जी चाहता है....
तुझसे और क्या अरज करूँ?
जब मेरा हृदय ही तेरे प्रेम से भर जाता है....
तुझसे और क्या माँगू ?
जब मेरे नैनों का आँचल ही भीग जाता है...
तुझसे और क्या चाहूँ?
जब मेरी चाहत का प्याला ही छलक जाता है.....
तुझसे और क्या सुनूँ ?
जब मेरे ध्यान में तेरी, मौन की गूंजें भर जाती हैं....
तुझसे और क्या पाऊँ ?
जब मुझे स्वयं में ही खो जाने को जी चाहता है....
तुझसे और क्या अरज करूँ?
जब मेरा हृदय ही तेरे प्रेम से भर जाता है....