Monday 21 January 2013

ये तेरे नयनों की ,
 मौन की कौन - सी बिरली भाषा है 
जो मुझ तक और 
मुझमें सरलता - सहजता से  हृदय में उतर जाती है ....
तुझे निहारते ही अपनी सुध-बुध में ,
तुझे ढूँढा करती हूँ सदा.......
........प्रार्थना ................

अपनी तलाश जारी है,  अपनी जद्दोजहद खुद से,  अपने को खोजतीं हूँ खुद में ,
हे खुदा !! मुझे तराशते वक़्त तुम्हे , मेरे वजूद और मेरा जरा भी ख्याल ना आया......
........प्रार्थना .............