Friday 5 April 2013

तुमने सींचा , मुझे जो ऐसे है कि अब मुझ में भी फूल खिलने लगे हैं ....
तुमने गुड़ाई , मेरी जो की है कि अब मैं भी गहरा गई हूँ ....
तुमने छाँट , मुझे जो ऐसे दिया है कि अब मैं भी मजबूत हो गयी हूँ ....
तुमने हरा-भरा , जो कर दिया है कि अब मैं भी छाँव देने लगी हूँ ....
[ कोशिश जारी है ...]
.......प्रार्थना .........
मनन .....
"द्वंद "...क्या अच्छा है , क्या बुरा है , क्या गलत है , क्या सही है , क्या करना चाहिए था , क्या करना चाहिए और क्या नहीं ......ये सब वर्तमान परिस्थिति ,  मौके , हालात और उस समय निर्णय  लेने पर निर्भर करता है ......जो ठीक लगा , वह किया ...इसलिए द्वंद में रहने से , दोषारोपण और स्वयं  को दोषी मानने से बेहतर है कि हम आगे की सुध लें .....और ठोकर लगने से पहले ही सतर्क हो जायें ......
[ मेरी तो स्थिति बेहतर ही हुई है ...]
.....बस यूँ ही एक विचार ......
........प्रार्थना .......