Thursday 18 April 2013

मनन .....
" मैं "....आखिर क्या है ये " मैं  ".....का परिचय क्या है ?? जो हमने अपने अहं को अपने अंदर बो दिया या इकठ्ठा कर हमारी पहचान बन बैठा है .....शायद इस में बंध कर हम  अपनी सोच और संकुचित दायरे का परिचय देते हैं ... जब हम इस मैं से अपने को बाँध लेते  है तो फिर  इसी के हो कर रह जाते  है .....लेकिन अगर सोंचें कि ....  "सोच " की ऊँची उड़ान के आगे , कितना सूक्ष्म है ...... 
" मन " की गहराई के आगे कितना हल्का है ....." मौन " की परिभाषा के आगे , कितना निशब्द: है ...... "शहीदों "की कुर्बानी के आगे 
कितना स्वार्थी है ......आदि ...आदि .....तो फिर क्या फायदा इस  "मैं "...का…. अपना परिचय बनाना चाहेंगे इसे ???
 { बस यूँ ही एक विचार .....}
........प्रार्थना .

No comments:

Post a Comment