ना जाने क्यों हो जाती है आँखें नम
तू ना जाने कहाँ ,
एक टीस भरी आह की
किसी कोने में छुपी मेरे भीतर ......
तुझे भूल जाना चाहूँ
ये फितरत चाह कर भी ,
ना कर पाई अपने भीतर.....
अब तो तू बस एक गठरी - सी
कहीं दबी-छुपी -सी पड़ी है ,
मन की कोठरी में कहीं भीतर ........
.......माँ तेरी प्रार्थना ......................
तू ना जाने कहाँ ,
एक टीस भरी आह की
किसी कोने में छुपी मेरे भीतर ......
तुझे भूल जाना चाहूँ
ये फितरत चाह कर भी ,
ना कर पाई अपने भीतर.....
अब तो तू बस एक गठरी - सी
कहीं दबी-छुपी -सी पड़ी है ,
मन की कोठरी में कहीं भीतर ........
.......माँ तेरी प्रार्थना ......................
बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना....
ReplyDelete