Monday 17 December 2012

ना जाने क्यों हो जाती है आँखें नम 
तू ना जाने कहाँ , 
एक टीस भरी आह की 
किसी कोने में छुपी मेरे भीतर ......
तुझे भूल जाना चाहूँ 
ये फितरत चाह कर भी ,
ना कर पाई अपने भीतर.....
अब तो तू बस एक गठरी - सी 
कहीं दबी-छुपी -सी पड़ी है ,
मन की कोठरी में कहीं भीतर ........
.......माँ तेरी प्रार्थना ......................

1 comment:

  1. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना....

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