Wednesday, 28 November 2012

मनन 
"दुःख"...तभी तक है , जब तक हम इसे या इससे होने वाली पीड़ा का स्वागत करेंगे ... 
और भूल जाते हैं कि जीवन इसके बिना और आगे भी है ..
जो कि हमारी सोच और कर्म में निहित है ...
उसी का होना हमारे जीवन और होने का परिचायक है...न कि उसे सहजना या उसके साथ जीना या चलना...
.क्यों कि तब वह आपके जीवन में गड्ढे खोदेगा...दिखेगा....या एहसास करायेगा...
इसलिए ऐसी स्थिति में उसका रास्ता बंद कर अपनी गति तेज कर लेनी चाहिए ....
और उसे बहुत पीछे छोड़ देना चाहिए ...जिससे वह आपकी बराबरी ही नहीं कर पाए ...
उसे उलटा कुंठित होने दो और आप अपनी मंजिल पा लो ....उचाईयों कि......
.....प्रार्थना....

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