मनन
"सुख"...... आखिर है क्या ये बला ??...इसे कैसे परिभाषित किया जाये ?..या कैसे समझा जाये ??? या कैसे पाया जाये ???....और हम सुखी कैसें हों ??...या सुख कि प्राप्ति कैसे हो ???
आम मनुष्य सिर्फ कूप - मंडूक की भाँति जीवन व्यतीत कर , चला जाता है ....वह सुख सिर्फ देह और इन्द्रिय से प्राप्त होने वाले सुख को सर्वोच्य मान उसे भोगता चला जाता है.....उसे भगवत प्राप्ति की ना चाह है ना उम्मीद ...... मन्दिर
"सुख"...... आखिर है क्या ये बला ??...इसे कैसे परिभाषित किया जाये ?..या कैसे समझा जाये ??? या कैसे पाया जाये ???....और हम सुखी कैसें हों ??...या सुख कि प्राप्ति कैसे हो ???
आम मनुष्य सिर्फ कूप - मंडूक की भाँति जीवन व्यतीत कर , चला जाता है ....वह सुख सिर्फ देह और इन्द्रिय से प्राप्त होने वाले सुख को सर्वोच्य मान उसे भोगता चला जाता है.....उसे भगवत प्राप्ति की ना चाह है ना उम्मीद ...... मन्दिर
-शिवालयों में उन्हें देख संतुष्ट हो जाया करता है.....क्यों कि वह उसी में लिप्त है ...और जीवन परयन्त्र रहता है......जहाँ शुद्धता अपने में लाना और समभाव में रहने की कोशिश में लगे रहने [कभी सफल -असफल ] की कोशिश भी एक तरह का सुख ही है..... जहाँ हम आत्म-शान्ति पा जाते हैं ......इसके लिए हमें अपनी सोच-समझ-विचार बदलने होंगे अर्थात उनका प्रारूप बदलना होगा ....अपने सुख नए सिरे से परिभाषित करना होगा... .और उसे उत्तेजना में ना पा कर , समभाव में रहना सीखना होगा ....बेशक यह यात्रा कठिन अपितु कभी -कभी असंम्भव सी लगेगी ....और समय भी लगेगा , अपने को हाँकने में ....क्यों कि परिवर्तन लाने में समय लगता है.... यह किसी अबोध शिशु कि भाँति है.....जिसकी परवरिश में , धैर्य कि अति आवश्यकता होती है.....उसे सींचना होगा .....
मुझे तो लगता है कि यह एक पल कि मनस्थिति है....जहाँ आप को आपके शाश्वत होने के स्वरूप से परिचय हो जाये.....शान्ति मिलती है....सांसों का एहसान ना हो कर विलीनता का पूर्ण ज्ञान अर्थात एकाकार......जिसमें मन व्यापक हो उठे करूणा , प्रेम बन बहे .....अश्रु , हृदय का मेल धो डालें , देह का एहसास ना हो कर आप अपनी आत्मा को सुन और समझ पायें ......कि आप को सच्चा सुख किस में मिलता है ????
मेरी बालकनी में इसी पल ...गौरियां...कबूतर...और अनेक पक्षी एक साथ चावल की कनकी चुग रहे है....पानी पी रहे हैं......और मुझे सुख कि प्राप्ति हो रही है......
.....प्रार्थना.......
यह मेरे विचार हैं....मेरी कोशिश जारी हैं...और इनके आधीन हूँ......
मुझे तो लगता है कि यह एक पल कि मनस्थिति है....जहाँ आप को आपके शाश्वत होने के स्वरूप से परिचय हो जाये.....शान्ति मिलती है....सांसों का एहसान ना हो कर विलीनता का पूर्ण ज्ञान अर्थात एकाकार......जिसमें मन व्यापक हो उठे करूणा , प्रेम बन बहे .....अश्रु , हृदय का मेल धो डालें , देह का एहसास ना हो कर आप अपनी आत्मा को सुन और समझ पायें ......कि आप को सच्चा सुख किस में मिलता है ????
मेरी बालकनी में इसी पल ...गौरियां...कबूतर...और अनेक पक्षी एक साथ चावल की कनकी चुग रहे है....पानी पी रहे हैं......और मुझे सुख कि प्राप्ति हो रही है......
.....प्रार्थना.......
यह मेरे विचार हैं....मेरी कोशिश जारी हैं...और इनके आधीन हूँ......
बहुत सारगर्भित चिंतन...
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeletethnx!!!!
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