Saturday 23 February 2013

मनन...... "आखिरी -पड़ाव".....
यहाँ की कोई बात नहीं करना चाहता,...न जाना चाहता है,....न कोई ले जाना चाहता है,....न इसके बारे में सुनना चाहता है,.....न सुनाना चाहता है,.....हम सभी इससे ुअनिभिग्य रहना चाहते है,....लेकिन यहाँ पहुँचते ही या देखते ही ....हम मौन हो जाते हैं,....शान्ति सी लगती है,......ठहराव सा पातें हैं,.....किसी की लालसा नहीं रहती,....अकेलापन लगता है ,......सब छूटता सा लगता है और मन में वैराग्य आता है , और हाँ !!!! मुझे ऐसा भी लगा की "मैं " हूँ .......आखिर क्यों ????
" माँ "..के अंतिम संस्कार के दूसरे दिन , मैं वहाँ दीपक रखने गयी थी .....मुझे वहाँ ऐसा ही लगा ....... 
बस यूँ ही एक विचार .....इससे अधिक कुछ नहीं.......
........प्रार्थना ..........

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