Wednesday, 28 November 2012

मनन 
प्रेम-"भाव"...मन की वह सरल अवस्था हैं जहाँ ...मन अहं - रहित हो...समभाव से प्रत्येक प्राणी में , ईश्वर की प्रभुता मुस्कान भाव में होती और दिखाई है.....ये जितना देती है,उतना ही दुगने रूप में मिलती है...
भक्त का भाव ईश्वर से ऊँचा है और वह इसके बहुत आधीन हैं...........क्यूँ कि भक्त बिना भाव के हो सकता है पर ...भाव के बिना भक्त नहीं.....प्रभु भाव के ही भूखे हैं.....हमारी पौराणिक कथाएँ में इनका वणॆन है ....जहाँ भी भाव से बुलाया , तहाँ विराजे हैं....."हृदय से कि गयी प्रार्थना सुन ली जाती है".....यही इसका सत्य-प्रमाण है.....इसका अनुभव हम सभी को है......मेरा यही विश्वास है.......
....प्रार्थना......

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