मनन ......
" प्रार्थना "......मन का एक निर्मल भाव .....जहाँ हम , अपने द्वेष ...कपट और क्रोध से ऊपर उठ कर , ईश्वर से एकाकार होने की कोशिश करते हैं ....उस समय का प्रभाव इतना हम पर गहरा होता है कि हम खुद ही अपना स्तर उठा देते हैं .....हमारा " भाव " और " हम " ईश्वर की प्राथमिकता बन जाते हैं .....क्यों कि ...जब हमने किसी के हित में कुछ सोचा या बोला और वह स्वतः ही पूर्ण हो जाता है .....यही इसका प्रमाण है ....स्वार्थ से परे यह सरल - भाव ...की " प्रार्थना ".....का परिणाम है ......बस एक भाव......
.........प्रार्थना ........
—" प्रार्थना "......मन का एक निर्मल भाव .....जहाँ हम , अपने द्वेष ...कपट और क्रोध से ऊपर उठ कर , ईश्वर से एकाकार होने की कोशिश करते हैं ....उस समय का प्रभाव इतना हम पर गहरा होता है कि हम खुद ही अपना स्तर उठा देते हैं .....हमारा " भाव " और " हम " ईश्वर की प्राथमिकता बन जाते हैं .....क्यों कि ...जब हमने किसी के हित में कुछ सोचा या बोला और वह स्वतः ही पूर्ण हो जाता है .....यही इसका प्रमाण है ....स्वार्थ से परे यह सरल - भाव ...की " प्रार्थना ".....का परिणाम है ......बस एक भाव......
.........प्रार्थना ........
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