Wednesday, 16 January 2013

यह कौन , है मौन - सा प्रेमी .....मेरे भीतर ......
जो मुझे राह दिखाता , सुझाता और बुझाता ......
जो मुझे सहनशील बनता , समझाता और सिखाता......
जो मुझे शाँत करता , सुख और तृप्त करता .....
ओह !!! मैं तो भूल ही गई 
तुम्हारा वृन्दावन ,निज स्थान तो 
तो मेरे मन का आँगन ही तो है......
.........प्रार्थना ..........
मनन ......
हम से वही छूटता है जो हमारा नहीं है या जो हमारे भाग्य में नहीं है .....और हम यही सोच कर दुखी होते हैं पर हमें जो मिला है या जो मिल रहा है उस सुख के बारे में नहीं सोचते .....अगर हम दोनों को तौल कर देखें तो पाएंगे कि जो सुख का स्तर हम भोग रहे हैं वह अत्यंत जयादा है , उस दुःख के समक्ष .......और यह सुख आपके साथ शायद जीवन परयन्त्र साथ रहेगा ......इसलिए हमें आज के सुख में और उसके साथ जीने की कोशिश करनी चाहिए ......
बस यूँ ही एक विचार मन में आया .......
..........प्रार्थना ............