Monday, 25 February 2013


मनन
"आस्था ".......यह एक बचपन की घुटी की तरह विचार है ......जिसका स्वरूप श्रद्धा ...सपर्पण में बदल सकता है .....जो जरूरतों के हिसाब से आस्था बदलती रहती है.....वह चिरस्थाई है ये एक लहर की तरह शाँत हो जाया करती है......फिर आ-जाया भी करती है.....यह अगर स्वभाव में गहरी पैठ बना ले , तब यह आनंद का ....आनंद में ....स्थाई तौर पर हो गहरा हो जाया करता है.......तब बहने .....अभिवयक्ति .....भावों ....का प्रादुर्भाव का प्रारम्भ हो जाया करता है और वह भी चारों याम ......अर्थात व्यक्ति के निर्माण की प्रक्रिया और यहीं से आगे का मार्ग प्रशस्थ होता है.....
...........प्रार्थना ............