हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
Wednesday, 22 May 2013
कुछ मासूम से परिंदे अब भी उड़ते हैं भीतर चाह की खोज में बंधे ये , जब थक जाते दुनिया सिमट जाती अपने ही भीतर उस सिमटी सी , के सिमटे नभ में भी मीलों की ऊँची उड़ान भरते ये " परिंदे "... विस्तृत नभ नहीं , बस उड़ान ऊँची होनी चाहिए ..... .......प्रार्थना ....... —