हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
Monday, 19 November 2012
साहिलों को देख मुकाम नहीं मिला करते
पतवार चलाते -चलाते ही ये पल हैं गुजरते
किनारों पर बैठ लहरों को गिनने से नहीं
लहरों को अपने में समाकर ही जीना
क्यों कि ...जीवन रूपी किनारे नहीं रहते एक से सदा....