Sunday, 21 October 2012

यूँ तो मैंने खुद का जीवन जिया ही कब ???
पहले बीस संस्कारों वाली बेटी बनने में गुजारे
फिर अच्छी बहू बनने की चाह में जुट गई ,
बीच-बीच में पत्नी होने को भी खोजती रही 
हाँ अब "माँ " कि बारी में पल -पल के हिसाब से जीती चली गई
हो गए हैं वो आत्म -निर्भर ....
आदत से हूँ मजबूर , ढूंढ रही फिर से कोई 
पलों को बिताने का बहाना...............

1 comment:

  1. बढ़िया प्रस्तुति |
    हकीकत है-
    बदलनी चाहिए-
    आभार ||

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