ना जाने तेरी आँखों में, कैसा नूर है
जो मुझे रोशन कर जाता है......
ना जाने तेरे साथ की , कैसी ललक है
जो मेरे अंदर बढ़ती ही जाती है.....
ना जाने तेरी कैसी ,ये प्यास है...
जो मुझे कभी तृप्त ही नहीं होने देती.....
पर...तुझ में रमने के बाद
और कुछ पाने का जी ही नहीं चाहता.....
जो मुझे रोशन कर जाता है......
ना जाने तेरे साथ की , कैसी ललक है
जो मेरे अंदर बढ़ती ही जाती है.....
ना जाने तेरी कैसी ,ये प्यास है...
जो मुझे कभी तृप्त ही नहीं होने देती.....
पर...तुझ में रमने के बाद
और कुछ पाने का जी ही नहीं चाहता.....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
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