Saturday, 7 July 2012

ओ .....कारे.... बदरवा ......
काहे को... पीहर की याद दिलावे
वो बचपन में अटारी पे चढ़ 
माँ को पुकारना और फिर डांट खाना......
गैस खत्म होने पर ,
चूल्हे की चाय-ढूध पीते-पीते पल्लू को मुठ्ठी में पकड़ते जाना...और मुँह बनाना 
और माँ को सिगड़ी पर खाना बनाते हुए देखना
शिव जी का अवषेक, श्रृंगार और रुद्र्काष्ट्म..आरती.....
पता नहीं तू मुझे मेरी कमजोरी गिना रहा कि....मजबूत बना रहा.....
ओ...कारे....बदरवा .......

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