कान्हा ने ओढा पिला-पीताम्बर ,मैंने है नारंगी
कभी तो मिलने की होगी आस पूरी .....
कान्हा तो हैं सागर ,में तो हूँ गागर
कैसे समाऊँ तुझे, तेरा स्नेह है अपार...
जरा सा तुझे पाया ,मन तो इठलाया
पग-पग धीर न धरूँ, झलकता ही जाऊँ...
तुझे नजरों में भरूँ ,स्वयं को सबसे चुराऊँ
मेरा ये कैसा दीवानापन है, तुझ में पाया जो अपनापन है....
न सूझ रहा मुझे, किधर जा रही हूँ
मालूम है मुझे, में सिर्फ तुझे पाती जा रही हूँ ....
बहुत प्यारी रचना .... हार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDeleteअहसास का खूबसूरत बयान...
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