हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
Sunday, 17 February 2013
ये जो मन की तपन है तेरी छुअन से ही शांत होती है ...... ये जो तन की बहती धारा है तेरे सागर से मिल के ही तृप्त होती है..... ये जो मन की भटकन है तेरी कुञ्ज-गलियों में पग धरते ही मौन हो जाता है...... ये जो तन की धरा है तेरे एहसास को पा "हरश्रंगार "बन स्वतः ही बरसने लगता है..... ........प्रार्थना ..........
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