" बंधन और आज़ादी "...कहने को तो विपरीतार्थक शब्द हैं , पर सोच और मानसिकता इन्हें और इनके प्रारूप को बदल देती है.....
क्यों की कभी बंधन में बंधे हुए भी हम और हमें आज़ादी का अनुभव और एहसास होता है,......और कभी - कभी हमें और हमारी आजादी में भी बंधन लगने लगता और कभी आवश्यकता महसूस होने लगती है......
बस यूँ ही एक विचार !!!!!
.........प्रार्थना .........
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