हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
Tuesday, 28 August 2012
कछु ऐसो साची लिख जाऊँ ....सखी -री... ना कोऊ ने , ना लिखो ...ऐसो-री.... कोऊ पढ़े तो ऐसो लागे मैं ना थी, बा-पे बलिहारी....बो -ही परो म्हारे पीछे...बनबारी.... ना थी बाके प्रेम में... मैं बिगरी... बो ही था म्हारी...भगति पे....न्योछाबर......
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