Tuesday, 1 November 2011

मुझे तो लगता है.....
बस तू तो है धरा
सहती है...सहजती है...
जननी है
बन के बहती गँगा कि धारा सी
कहाँ से उपजी और कहाँ अंत ...
तेरा सिर्फ मौन ही स्वीकारा जायेगा
क्यों कि
तू माँ है
तू बेटी है
तू भार्या है
तू बहन है....हर रूप में तू आश्रित है.....

7 comments:

  1. अच्छे शब्दों का प्रयोग , भावों की सुंदर अभिव्यक्ति ...

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  2. सुंदर भावों और शब्दों से सजी खुबशुरत रचना,बेहतरीन पोस्ट....

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  3. हर रूप में तू आश्रित थी और है मगर अब आगे नहीं रहनी चाहिए , सच है धरती की तरह सबकुछ सहन करती है , तेरा कुछ भी बोलना किसी से सहन नहीं होगा और तेरा मौन ही स्वीकारा जायेगा , चंद पंक्तियों में बहुत गहरी व् सच बात

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  4. गहन भावों की सटीक और बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  5. thnx!!all....

    मैं स्वयं को क्यों खोजती हूँ ???
    क्या मैं अपने आप मैं सम्पूर्ण नहीं......

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  6. ये आश्रिता सर्वशाक्तिशालिनी भी है!

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