हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
Friday, 28 October 2011
मेरी अभिलाषा....
किसी के ह्रदय के कोने में जगह पाऊँ, किसी की यादों में आ के थोड़ा जी जाऊँ, किसी किताब को पलटते ही दिख जाऊँ, किसी के नैनों में नीर बन भर जाऊँ, किसी साँसों में आ एहसास पा जाऊँ और मैं....समय की मुट्ठी से,रेत की तरह ढुलक जाऊँ......
Good one...
ReplyDeletewww.gunchaa.blogspot.com
कोमल अभिलाषाएं हैं... यूँ ही बनी रहे!
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