Sunday, 28 August 2011

किसी से मिल के हम ना मिले
जब तक हम तुम से ना मिले.....

यूँ तो मिले हर बार तुमसे
खो कर अपने आप को तुमसे....
.
ललक बढती ही जा रही है
मृग-तृष्णा भटकाती ही जा रही है....

दुनिया करे सवाल,कहाँ हो इस हाल
कैसे कहूँ ?मौन के आनंद में हूँ फिलहाल....

3 comments:

  1. प्रार्थना जी, कमाल के हैं आपके ब्‍लॉग। कृष्‍ण भक्‍ित से रंगे हुए।
    बहुत अच्‍छा लगा। धन्‍यवाद।

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  2. मौन के आनंद में हूँ फिलहाल.... bahut achche......

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  3. मौन के आनन्द ने विमुग्ध कर दिया …
    आभार !



    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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