Tuesday, 16 August 2011

मेरे प्रभु!!!!
बंधन स्वीकार करो मेरा

जो रिश्तों से मुक्त हो,परे हो ....
जिसमें आत्मीयता की डोर हो,
जिसमें निष्कपटता के फूल खिले हों,
जिन्हें स्नेह-नीर से सींचा हों,
जिसमें मिलन की आस हो,
जिसको देख- गर्व समर्पण का हो.....

ऐसे बंधन से मैं तुम्हें बाँधना चाहूँ
यही है मेरा "रक्षाबंधन " है तुम्हें.....

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