Friday, 14 January 2011

हे!माँ
तुम व्योम विशाल,
पर तुम सदा मेरे मन के धरातल पर .....
तुम श्वेत गंगा ,
पर तुम सदा मेरे तन में लहु बन कर .....

1 comment:

  1. आपकी यह रचना लाजवाब है।

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