हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
Friday, 14 January 2011
हे!माँ तुम व्योम विशाल, पर तुम सदा मेरे मन के धरातल पर ..... तुम श्वेत गंगा , पर तुम सदा मेरे तन में लहु बन कर .....
आपकी यह रचना लाजवाब है।
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