Saturday, 17 July 2010

मेरा बचपन .....

मुझे याद
नहीं अपना बचपन
कुछ   पलों  के सिवा,
कुछ -भूला
कुछ -बिसरा
कुछ -चुप सा
था यह मन मेरा .....
कुछ  पलों  में खो भी जाऊँ
तो याद आता है
कि मैं चुप हूँ
और समय कि धारा बह रही है....
और हाँ !
माँ की  मेरे प्रति और मेरी उनके प्रति कुछ भावनाएँ,
मुझे डर कि वह कहीं गुम ना हो जायें .......
मैंने सदा अपने आपको अपने आप में ,
सिमटा पाया कुछ पलों के साथ ,
 जैसे सिमटे पड़े
कुछ  ओस  के मोती  ,
किसी वृक्ष की   डाली पर ....

15 comments:

  1. और हाँ !
    माँ की मेरे प्रति और मेरी उनके प्रति कुछ भावनाएँ,
    मुझे डर कि वह कहीं गुम ना हो जायें .......
    मैंने सदा अपने आपको अपने आप में ,
    सिमटा पाया कुछ पलों के साथ ,
    जैसे सिमटे पड़े
    कुछ ओस के मोती ,
    किसी वृक्ष की डाली पर ....

    अच्छी रचना ......

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  2. आपकी कविता को पढकर हमें अपना बचपन भी याद आ गया।
    बहुत सुंदर कविता है, बधाई स्वीकारें।
    ................
    नाग बाबा का कारनामा।
    महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?

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  3. कहा जो वो दिल को छुआ , जो नहीं कहा , उसे आँखों में बन्द कर लिया

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  5. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा रचना लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!

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  6. जैसे सिमटे पड़े
    कुछ ओस के मोती ,
    किसी वृक्ष की डाली पर ...
    बेहतरीन

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  7. प्रार्थना जी, आपकी कविता पढकर हमें भी अपना बचपन याद आ गया।
    --------
    सावन आया, तरह-तरह के साँप ही नहीं पाँच फन वाला नाग भी लाया।

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  8. Bahut sundar Bachpan ka chitran kiya aapne!!
    apne vicharo or sujhawo k liye mere blog par swagat h.......

    Jai Ho Mangalmay ho

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  9. bachpan..ek aisa vishay hai jis par jo bhi..jitna bhi likha jaye..keha-suna jaye..kam hai..jab bachpan hi apne aap mein sundar hai to us par likhi aapki ye rachna bhi utni hi sukhad hai..!

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  10. अति उत्तम रचना .....बचपन बहुत सुहाना होता है ...

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  11. बचपन की गलियों में
    इधर उधर बिखरी
    यादों को समेट लेने की अच्छी कोशिश

    सुन्दर रचना

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  12. आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .

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  13. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति........अच्छी रचना ......!!

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