Wednesday, 2 May 2012

तेरी तो हर बात ही निराली थी.... तूने जो झुकाई , मेरे हर कदम पर अपनी बाहों की डाली थी..... तेरी तो हर बात ही अनकही थी.... तूने जो पिलाई , मेरी नासमझी पर अपनी समझ की प्याली थी..... तेरी तो हर बात में ही दूर-दृष्टि थी.... तूने जो बोई, मेरे अंतर-मन पर अपनी सरल-सहज और सहजता की छवि थी.... हे माँ! मेरी तो हर बात ही सदियों पुरानी थी.... तूने जो सुनायी , मैंने भी वो ही निभायी अपनी-तेरी रीत पुरानी....

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