हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
Wednesday, 2 May 2012
तेरी तो हर बात
ही निराली थी....
तूने जो झुकाई ,
मेरे हर कदम पर
अपनी बाहों की डाली थी.....
तेरी तो हर बात
ही अनकही थी....
तूने जो पिलाई ,
मेरी नासमझी पर
अपनी समझ की प्याली थी.....
तेरी तो हर बात
में ही दूर-दृष्टि थी....
तूने जो बोई,
मेरे अंतर-मन पर
अपनी सरल-सहज और सहजता की छवि थी....
हे माँ!
मेरी तो हर बात
ही सदियों पुरानी थी....
तूने जो सुनायी ,
मैंने भी वो ही निभायी
अपनी-तेरी रीत पुरानी....
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bahut khoob.
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