Sunday, 18 March 2012

माँ!!!
मैं अभी तक दो नावों में सवार थी.....
पर तेरे जाने के बाद
यह द्व्न्द भी अनछुआ न रहा....और समाप्त हो गया....
अब मन भी एक तरफा हुआ
लगता यहीं ... मेरे दायरा है......

तेरे आँचल तले
जैसी छांव तो नहीं
पर,आसरा-घरौंदा अब यहीं है......

तेरे नर्म कर की
गर्माहट तो नहीं
पर,सहारा-साथ अब यहीं है.......

तेरे लबों जैसी मीठी
मुस्कराहट तो नहीं
पर, हँसना -मुस्कुराना अब यहीं है.......

No comments:

Post a Comment