"मन के मंजीरे"
आज मैं स्त्री को.....
पौधे के रूप में देख रही हूँ
धूप [दुःख] में खुम्हला जाता है....
छाँव [साथ ] में शाँत रहता है.....
गुड़ाई [वजूद] करने से गहरा जाता है....
सींचने [एहसास] से हरया जाता है....
निहारने [बिना छेड़े] से सकून देता है....
खाद [प्रेम] डालने पर देर तक चलता है ............बस यूँ ...ही......एक ख्याल......
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