हृदय की बंजर जमीं पर,जब भक्ति की स्नेह वर्षा होती है तो कुछ अंकुर स्वतः ही फूट पड़ते हैं.....उन पल्लवों पर कुछ ओस की बूँदें भावना बन कर उभर जातीं हैं.....बस ये वही आवेग हैं......
Tuesday, 7 February 2012
माँ!!!! अटारी तो है पर छाया नहीं..... विहंगम तो है पर मधुर स्वर नहीं.... भीड़ तो है पर तुम सा नहीं..... मैं तो हूँ पर मन में खालीपन लिए.....
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