Wednesday, 14 July 2010

मेरी पहचान क्या है ?........

मेरी बुराईयों पर मेरी अच्छाइयों की जीत ही
 मेरी पहचान है.....
कभी-कभी ,मेरी कोमल भावनाएँ पर  गहरी
चोट से आहत हो जाती हूँ .......
पर तेरे साथ और होने के अहसास से,
मैं फिर से जी  उठती  हूँ,जैसे मुरझाये  हुए पौधे में,
कोई फिर से जल से भर दे ......  

1 comment:

  1. bahut sundar prastuti...

    kisi ka sachha saath hi kafi hota hai.
    .

    ReplyDelete